मन्त्रहीनं क्रियाहीनं यत पूजनं हरे: ।
सर्वं सम्पूंर्णतामेति कृते नीराजने शिवे ॥
पूजन मन्त्रहीन और क्रियाहीन होने पर भी नीराजन (आरती) कर लेने से उसमें सारी पूर्णता आ जाती है। आरती में पहले मूलमन्त्र जिस देवता का जिस मन्त्र से पूजन किया गया हो, उस मन्त्र के द्वारा तीन बार पुष्पांजलि देनी चाहिये और ढोल, नगारे, शंख, घड़ियाल आदि महावाद्यों की ध्वनि तथा जय-जयकार के शब्द के साथ शुद्ध पात्र में घृत से या कपूर से विषम संख्या की अनेक बत्तियां जलाकर आरती करनी चाहिए ।
स्तुति गणपती जी की :
गणपति की सेवा मंगल मेवा सेवा से सब विध्न टरें।
तीन लोक तैंतीस देवता द्वार खड़े सब अर्ज करे ॥1
ऋद्धि-सिद्धि दक्षिण वाम विरजे आनन्द सौं चंवर दुरें ।
धूप दीप और लिए आरती भक्त खड़े जयकार करें ॥2
गुड़ के मोदक भोग लगत है मूषक वाहन चढ़े सरें ।
सौम्य सेवा गणपति की विध्न भागजा दूर परें ॥3
भादों मास शुक्ल चतुर्थी दोपारा भर पूर परें ।
लियो जन्म गणपति प्रभु ने दुर्गा मन आनन्द भरें ॥4
श्री शंकर के आनन्द उपज्यो, नाम सुमरयां सब विध्न टरें ।
आन विधाता बैठे आसन इन्द्र अप्सरा नृत्य करें ॥5
देखि वेद ब्रह्माजी जाको विध्न विनाशन रूप अनूप करें।
पग खम्बा सा उदर पुष्ट है चन्द्रमा हास्य करें ।
दे श्राप चन्द्र्देव को कलाहीन तत्काल करें ॥6
चौदह लोक में फिरें गणपति तीन लोक में राज करें ।
उठ प्रभात जो आरती गावे ताके सिर यश छत्र फिरें ॥7
गणपति जी की पूजा पहले करनी काम सभी निर्विध्न करें ।
श्री गणपति जी की हाथ जोड़कर स्तुति करें ॥8
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