मंगलवार, 30 जून 2015

वेद में ओऽम (ॐ) का महत्व​..

ॐ शब्द के संधि विच्छेद से अ + उ + म वर्ण प्राप्त होते हैं। इसमें "अ" वर्ण "सृष्टि का द्योतक है "उ" वर्ण "स्थिती" का और "म​" से "लय" का बोध होता है। ओऽम से ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों का बोध होता है और इसके उच्चारण मात्र से इन तीनों देवों का आह्वाहन होता है। ओऽम के तीन अक्षर तीन अक्षर तीन वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद) के भी प्रतीक माना गया है। 

कठोपनिषद में यमराज नचिकेता से कहते हैं-
सर्वे वेदा यत पद्ममामनन्ति तपांसि सर्वाणि च यद वदन्ति।
यदिच्छ्न्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत्ते पदं संग्रहेण ब्रवीभ्योमित्येतत्॥

अर्थात- सभी वेदों ने जिस पद की महिमा का गुणगान किया है, तपस्वियों ने तप करके जिस शब्द का उच्चारण किया है, उसी महत्त्वपूर्ण शक्ति को साररूप में मैं तुम्हें समझाता हूँ। हे नचिकेता! समस्त वेदों का सार, तपस्वियों का तप और ज्ञानियों का ज्ञान केवल "ॐ" में ही निहित है।


श्रीमद्भागवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण  अर्जुन को उपदेश देते हुए कहते हैं-
ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहर्न्यामनुस्मरन्। 
य​: प्रयाति त्यजनदेहं स याति परमां गतिम्॥

अर्थात-  मन के द्वारा प्राण को मस्तक में स्थापित करके, योगावस्थ में स्थित होकर जो पुरुष अक्षर रूपब्रह्म का चिंतन मनन करते हुए ।

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